दीप दीप्ति

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Monday 13 April 2015

कुर्सी की महिमा

मैं हूँ कुर्सी महारानी
 सुनो मेरी कहानी
 हर तरफ हर क्षेत्र में
 बस चलती मेरी मनमानी
मेरे कारण कितनों ने
 खेली खूनों की होली
 अपनों से भी तोड़वा दूँ रिस्ते
 वो चीज हूँ मैं अलबेली
माँ की गोद ज्यादा आनंद
 मेरी गोद में मिलता हरदम
 मुझे पाकर हर मानव
 भूल जाता अपना सब गम
इस यूग में क्या हर यूग में
 हुई मेरी ही चाहत
 श्रीराम गये वन में
 हुआ यूद्ध महाभारत
मेरे लिए तो औरंगजेब ने
 मार दिया अपना सब भाई
 हिटलर ने लाखों को मारा
 कर दी दुनिया से लड़ाई
लक्ष्मी मेरे पैरों में बसती
 सरस्वती का सेवक आता है
 पर मेरे पास आते ही
 दूर्गा रुप ले लेता है
मेरी गोद में बैठकर कितने
 करते हैं मेरा अपमान
 तोड़कर मेरे नियम-कानून
 करते हैं मुझको बदनाम
अर्ज है मुझको चाहने वाले
 रखें मेरी भी इज्जत
 मेरी गोद में बैठकर जरा
 करें मेरी भी हिफाजत
~दीपिका ~

4 comments:

  1. बहुत सुंदर वर्णन आजके कर्सी की।

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद महोदय !

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