दीप दीप्ति

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Thursday 16 April 2015

आप दिया मैं बाती (कविता)

गुरु ज्ञान के सागर होते शिष्य धरातल का एक बूँद
 आप हैं कुम्भकार गुरुवर मैं हूँ माटी का एक कुम्भ
 मैं एक रिक्त खेत गुरुवर आप नंदनवन के कुंज
 मैं अंधेरी रात गुरुवर आप सूर्यकिरण के पूँज
 मंजील का सोपान दिखा दें मैं भूला भटका राही
 जग को रौशन करनेवाले आप दिया मैं बाती।


भगवान से पहले करुंगी गुरुवर आपको नमन
 गुरुदक्षिणा में अंगूठा क्या कर दूंगी जीवन अर्पण
 ऐसी शिक्षा दें हमें बनूं समाज का दर्पण
 दीप बनके ये वत्स आपका उज्जवल करे अपना वतन
 राही का सोपान बनूं दीन-दुखियों का साथी
 जग को रौशन करनेवाले आप दिया मैं बाती।


माता-पिता भी गुरु के रुप हैं देते हमेशा अच्छे ज्ञान
 गुरु के बिना इस जग में कोई नहीं बना महान
 गुरु नहीं होते दुनिया में तो धरती होती सुनशान
 बच्चों के उज्जवल भविष्य का गुरु के हाथ ही है लगाम
 ऐसा मुझे बनायें मुझपे गर्व करे ये माटी
 जग को रौशन करने वाले आप दिया मैं बाती।
@दीपिका कुमारी दीप्ति

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