आजकल की नारियों की
कैसी बन गयी आदत
सभी जरुरी काम छोड़कर
लगी है सीरियल देखने की लत
उस वक्त कोई खाना माँगे
तो बड़ा गुस्सा आता है
बच्चा गर रोने लगे तो
बेचारा वह पीट जाता है
सास-बहू-शौतन के झगड़े
और पति का प्यार
देखकर नायिका के आँसू
इन्हें होता कष्ट आपार
नायिका के चरित्र को
न उतारती अपने जीवन में
क्या करनी चाहिए उसे
सलाह देती रहती मन में
अगर मैं होती इसकी बहू तो
इस बुढ़िया को समझाती
हर जुर्म का ब्याज के साथ
बदला मैं चुकाती
सीरियल वालों से निवेदन है
न दिखायें अवास्तविकता को
सास-बहू का वैर दिखाके
न अपमान करें इस रिश्ता को
मुझको तो लगता है इसमें
बस होता है वक्त बर्वाद
वरदान टीवी सीरियल के कारण
बन गया है श्राप
~ दीपिका ~
Wednesday 6 May 2015
Saturday 18 April 2015
मेरी आकांक्षा
ऐ जिंदगी इतना साथ देना मैं पूरा करुं अरमान
यही आकांक्षा है मेरी मैं छू लूं आसमान
मेहनत से पिछे न हटे मन को ये बात बता देना
धैर्य विश्वास कभी न खोये दिल को ये समझा देना
समाज मुझे दर्पण समझे ऐसी बनाऊं पहचान
यही आकांक्षा है मेरी मैं छू लूं आसमान
देश को रौशन करुं चाहे खूद ही जलना पड़े
आगे रहे हमारा परचम चाहे जितना चलना पड़े
पतितों का बनूं सहारा पथिकों का सोपान
यही आकांक्षा है मेरी मैं छू लूं आसमान
ईमानदारी की तिनकों से बनाऊं अपनी एक सुंदर आसियाँ
चरित्र की पूँजी से धनी कर दूं मैं अपनी वादियाँ
मातृभूमि को भी मेरे जन्म पर हो अभिमान
यही आकांक्षा है मेरी मैं छू लूं आसमान
@दीपिका कुमारी दीप्ति (पटना)
यही आकांक्षा है मेरी मैं छू लूं आसमान
मेहनत से पिछे न हटे मन को ये बात बता देना
धैर्य विश्वास कभी न खोये दिल को ये समझा देना
समाज मुझे दर्पण समझे ऐसी बनाऊं पहचान
यही आकांक्षा है मेरी मैं छू लूं आसमान
देश को रौशन करुं चाहे खूद ही जलना पड़े
आगे रहे हमारा परचम चाहे जितना चलना पड़े
पतितों का बनूं सहारा पथिकों का सोपान
यही आकांक्षा है मेरी मैं छू लूं आसमान
ईमानदारी की तिनकों से बनाऊं अपनी एक सुंदर आसियाँ
चरित्र की पूँजी से धनी कर दूं मैं अपनी वादियाँ
मातृभूमि को भी मेरे जन्म पर हो अभिमान
यही आकांक्षा है मेरी मैं छू लूं आसमान
@दीपिका कुमारी दीप्ति (पटना)
Thursday 16 April 2015
दिल छू ले मंजील
मेरे दिल यूं न टूट के बिखर जा
माना कि क़ई बार मैंने हार को पाया
पर ये दिल यूं ना खो हौंसला
फिर से आगे बढ़ने का जोश जगा जा
वक्त को भी थाम ले
हर काम को अंजाम दे
मिलेगी मंजिल हमें
जरा धैर्य से तू काम ले
खुद पे जरा तू कर यकीन
उम्मीद का दीप न कर मद्धिम
कदम राह खुद ढूंढ़ लेंगे
हम पायेंगे मंजिल एक दिन
तकदीर-भाग्य-नसीब हमें कितने दिन सतायेंगे
मेहनत की तलवार से सबको कदमों में लायेंगे
मेरे दिल यूं ना…
हम वंशज हैं कर्मवीर के
न रोते हैं तकदीर पे
तूफां भी हमसे डरते हैं
हम लड़ते हैं हर पीर से
ये तो ट्रेलर है गम का
पूरा सीन बाकी है फिलम का
अभी से तू घबरा गया
तो क्या होगा जीवन का
गम के बादल को चीरकर खुशी का सूरज उगायेंगे
लोग सपनों से ऊँचा उड़ते हैं हम क्या मंजिल भी न पायेंगे
मेरे दिल यूं न टूट के बिखर जा
माना कि क़ई बार मैंने हार है पाया
पर यूं न दिल तू खो हौंसला
फिर से आगे बढ़ने का जोश जगा जा…
माना कि क़ई बार मैंने हार को पाया
पर ये दिल यूं ना खो हौंसला
फिर से आगे बढ़ने का जोश जगा जा
वक्त को भी थाम ले
हर काम को अंजाम दे
मिलेगी मंजिल हमें
जरा धैर्य से तू काम ले
खुद पे जरा तू कर यकीन
उम्मीद का दीप न कर मद्धिम
कदम राह खुद ढूंढ़ लेंगे
हम पायेंगे मंजिल एक दिन
तकदीर-भाग्य-नसीब हमें कितने दिन सतायेंगे
मेहनत की तलवार से सबको कदमों में लायेंगे
मेरे दिल यूं ना…
हम वंशज हैं कर्मवीर के
न रोते हैं तकदीर पे
तूफां भी हमसे डरते हैं
हम लड़ते हैं हर पीर से
ये तो ट्रेलर है गम का
पूरा सीन बाकी है फिलम का
अभी से तू घबरा गया
तो क्या होगा जीवन का
गम के बादल को चीरकर खुशी का सूरज उगायेंगे
लोग सपनों से ऊँचा उड़ते हैं हम क्या मंजिल भी न पायेंगे
मेरे दिल यूं न टूट के बिखर जा
माना कि क़ई बार मैंने हार है पाया
पर यूं न दिल तू खो हौंसला
फिर से आगे बढ़ने का जोश जगा जा…
आप दिया मैं बाती (कविता)
गुरु ज्ञान के सागर होते शिष्य धरातल का एक बूँद
आप हैं कुम्भकार गुरुवर मैं हूँ माटी का एक कुम्भ
मैं एक रिक्त खेत गुरुवर आप नंदनवन के कुंज
मैं अंधेरी रात गुरुवर आप सूर्यकिरण के पूँज
मंजील का सोपान दिखा दें मैं भूला भटका राही
जग को रौशन करनेवाले आप दिया मैं बाती।
भगवान से पहले करुंगी गुरुवर आपको नमन
गुरुदक्षिणा में अंगूठा क्या कर दूंगी जीवन अर्पण
ऐसी शिक्षा दें हमें बनूं समाज का दर्पण
दीप बनके ये वत्स आपका उज्जवल करे अपना वतन
राही का सोपान बनूं दीन-दुखियों का साथी
जग को रौशन करनेवाले आप दिया मैं बाती।
माता-पिता भी गुरु के रुप हैं देते हमेशा अच्छे ज्ञान
गुरु के बिना इस जग में कोई नहीं बना महान
गुरु नहीं होते दुनिया में तो धरती होती सुनशान
बच्चों के उज्जवल भविष्य का गुरु के हाथ ही है लगाम
ऐसा मुझे बनायें मुझपे गर्व करे ये माटी
जग को रौशन करने वाले आप दिया मैं बाती।
@दीपिका कुमारी दीप्ति
आप हैं कुम्भकार गुरुवर मैं हूँ माटी का एक कुम्भ
मैं एक रिक्त खेत गुरुवर आप नंदनवन के कुंज
मैं अंधेरी रात गुरुवर आप सूर्यकिरण के पूँज
मंजील का सोपान दिखा दें मैं भूला भटका राही
जग को रौशन करनेवाले आप दिया मैं बाती।
भगवान से पहले करुंगी गुरुवर आपको नमन
गुरुदक्षिणा में अंगूठा क्या कर दूंगी जीवन अर्पण
ऐसी शिक्षा दें हमें बनूं समाज का दर्पण
दीप बनके ये वत्स आपका उज्जवल करे अपना वतन
राही का सोपान बनूं दीन-दुखियों का साथी
जग को रौशन करनेवाले आप दिया मैं बाती।
माता-पिता भी गुरु के रुप हैं देते हमेशा अच्छे ज्ञान
गुरु के बिना इस जग में कोई नहीं बना महान
गुरु नहीं होते दुनिया में तो धरती होती सुनशान
बच्चों के उज्जवल भविष्य का गुरु के हाथ ही है लगाम
ऐसा मुझे बनायें मुझपे गर्व करे ये माटी
जग को रौशन करने वाले आप दिया मैं बाती।
@दीपिका कुमारी दीप्ति
Monday 13 April 2015
कुर्सी की महिमा
मैं हूँ कुर्सी महारानी
सुनो मेरी कहानी
हर तरफ हर क्षेत्र में
बस चलती मेरी मनमानी
मेरे कारण कितनों ने
खेली खूनों की होली
अपनों से भी तोड़वा दूँ रिस्ते
वो चीज हूँ मैं अलबेली
माँ की गोद ज्यादा आनंद
मेरी गोद में मिलता हरदम
मुझे पाकर हर मानव
भूल जाता अपना सब गम
इस यूग में क्या हर यूग में
हुई मेरी ही चाहत
श्रीराम गये वन में
हुआ यूद्ध महाभारत
मेरे लिए तो औरंगजेब ने
मार दिया अपना सब भाई
हिटलर ने लाखों को मारा
कर दी दुनिया से लड़ाई
लक्ष्मी मेरे पैरों में बसती
सरस्वती का सेवक आता है
पर मेरे पास आते ही
दूर्गा रुप ले लेता है
मेरी गोद में बैठकर कितने
करते हैं मेरा अपमान
तोड़कर मेरे नियम-कानून
करते हैं मुझको बदनाम
अर्ज है मुझको चाहने वाले
रखें मेरी भी इज्जत
मेरी गोद में बैठकर जरा
करें मेरी भी हिफाजत
~दीपिका ~
सुनो मेरी कहानी
हर तरफ हर क्षेत्र में
बस चलती मेरी मनमानी
मेरे कारण कितनों ने
खेली खूनों की होली
अपनों से भी तोड़वा दूँ रिस्ते
वो चीज हूँ मैं अलबेली
माँ की गोद ज्यादा आनंद
मेरी गोद में मिलता हरदम
मुझे पाकर हर मानव
भूल जाता अपना सब गम
इस यूग में क्या हर यूग में
हुई मेरी ही चाहत
श्रीराम गये वन में
हुआ यूद्ध महाभारत
मेरे लिए तो औरंगजेब ने
मार दिया अपना सब भाई
हिटलर ने लाखों को मारा
कर दी दुनिया से लड़ाई
लक्ष्मी मेरे पैरों में बसती
सरस्वती का सेवक आता है
पर मेरे पास आते ही
दूर्गा रुप ले लेता है
मेरी गोद में बैठकर कितने
करते हैं मेरा अपमान
तोड़कर मेरे नियम-कानून
करते हैं मुझको बदनाम
अर्ज है मुझको चाहने वाले
रखें मेरी भी इज्जत
मेरी गोद में बैठकर जरा
करें मेरी भी हिफाजत
~दीपिका ~
भगवान की वरदान:बेटी
भगवान की वरदान है बेटी रेगिस्तान में गुल
खिलाती है
वह घर स्वर्ग बन जाता है जिस घर में बेटी
आती है
अपने प्रिय खिलौने भी दे देती छोटे भ्राता को
बचपन से ही काम में सहारा देती माता
को
खुद कभी नहीं रुठती हरदम सबको मनाती है
वह घर स्वर्ग बन जाता है जिस घर में बेटी
आती है
जान से ज्यादा इज्जत को रखती है सम्हाल
बाबुल की पगड़ी ऊँची करके जाती है ससुराल
बाबुल पर विश्वास इसे खुद इच्छा नहीं जताती
है
वह घर स्वर्ग बन जाता है जिस घर में बेटी
आती है
मायके में ही छोड़ आती है अपनी पहचान और
परिवार
बस अपने साथ में ले आती है माता का संस्कार
खूद दिल में दर्द छुपाके सभी को ये हँसाती है
वह घर स्वर्ग बन जाता है जिस घर में बेटी
आती है
फिर भी देखो समाज की कैसी संकीर्ण है सोच
लक्ष्मी को दहेज़ के युग में समझने लगे हैं बोझ
धरा पर आने से पहले ही भ्रूण हत्या की जाती
है
वह घर स्वर्ग बन जाता है जिस घर में बेटी आती है
खिलाती है
वह घर स्वर्ग बन जाता है जिस घर में बेटी
आती है
अपने प्रिय खिलौने भी दे देती छोटे भ्राता को
बचपन से ही काम में सहारा देती माता
को
खुद कभी नहीं रुठती हरदम सबको मनाती है
वह घर स्वर्ग बन जाता है जिस घर में बेटी
आती है
जान से ज्यादा इज्जत को रखती है सम्हाल
बाबुल की पगड़ी ऊँची करके जाती है ससुराल
बाबुल पर विश्वास इसे खुद इच्छा नहीं जताती
है
वह घर स्वर्ग बन जाता है जिस घर में बेटी
आती है
मायके में ही छोड़ आती है अपनी पहचान और
परिवार
बस अपने साथ में ले आती है माता का संस्कार
खूद दिल में दर्द छुपाके सभी को ये हँसाती है
वह घर स्वर्ग बन जाता है जिस घर में बेटी
आती है
फिर भी देखो समाज की कैसी संकीर्ण है सोच
लक्ष्मी को दहेज़ के युग में समझने लगे हैं बोझ
धरा पर आने से पहले ही भ्रूण हत्या की जाती
है
वह घर स्वर्ग बन जाता है जिस घर में बेटी आती है
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